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मंत्रियों के लिए ‘मनहूस’ है रामटेक बंगला!
कोई रहने को तैयार नहीं
मुंबई, महाराष्ट्र की नई सरकार में नियुक्त हुए मंत्रियों में इन दिनों एक अलग ही तरह का
डर देखने को मिल रहा है। मंत्रियों
में यह डर एक बंगले को लेकर फैल रहा है। हम बात कर रहे हैं मंत्रियों के सरकारी निवास ‘रामटेक’ बंगले
की। मुंबई के बेहद पॉश और वीआईपी इलाके
में स्थित यह बंगला मंत्रियों के बीच अपशकुनी बंगले के रूप में कुख्यात हो चुका है, क्योंकि
इससे पहले यहाँ रहने के दौरान कई मंत्री बाद में अपने मंत्री पद से हाथ धो चुके हैं। महायुति की पिछली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे दीपक केसरकर इसका ताजा उदाहरण हैं। 15 दिसंबर को नागपुर स्थित राजभवन में राज्यपाल सी. पी.
राधाकृष्णन ने महायुति की नई सरकार के 39 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ दिलाई। इसमें भाजपा के 19, शिवसेना शिंदे गुट के 11 और अजित पवार की एनसीपी के 9 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली; लेकिन महायुति की पिछली सरकार में
सुर्खियों में रहने वाले उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के नेता दीपक केसरकर इन 39 मंत्रियों में शामिल नहीं थे। देश की आर्थिक
राजधानी मुंबई के वालकेश्वर/मलबार हिल इलाके में देश के प्रमुख उद्योगपतियों के आशियाने के
साथ-साथ मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, विधानसभा
अध्यक्ष सहित कई मंत्रियों एवं सरकारी पदों पर आसीन प्रमुख लोगों के सरकारी निवास भी स्थित
हैं। इन्हीं सरकारी इमारतों में ‘रामटेक’ बंगला
भी शामिल है। भव्य इमारत होने के बाद भी कोई मंत्री इसमें रहने को तैयार नहीं हो रहा है।
उपमुख्यमंत्री के लिए आरक्षित भव्य सरकारी बंगले रामटेक के बारे में मान्यता है कि इस बंगले में रहने वाला
कोई उपमुख्यमंत्री कभी भी
मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। इसके अलावा यहाँ रहने वाले कई मंत्रियों का सियासी करियर भी दाँव पर लग
चुका है। इसी वजह से एनसीपी के दिवंगत नेता आर आर पाटिल जब उपमुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने रामटेक बंगला नहीं लिया। रामटेक के इतिहास पर नजर डालें, तो वर्ष 1995 में मनोहर जोशी के नेतृत्ववाली
शिवसेना-भाजपा की महायुति सरकार के दौरान गोपीनाथ मुंडे रामटेक बंगले में रहते थे। वर्ष 1999 में कांग्रेस की सरकार बनी, तो उप
मुख्यमंत्री छगन भुजबल यहाँ रहने लगे। इसके बाद तेलगी घोटाला मामले में छगन भुजबल को इस्तीफा देना
पड़ा था। वर्ष 2014 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्ववाली
महायुति सरकार के दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे भी यहाँ रहे थे, लेकिन
भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण खडसे को डेढ़ साल के अंदर ही मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। बाद में वर्ष 2019 में
महाविकास आघाड़ी सरकार के दौरान छगन भुजबल फिर रामटेक बंगले में आए, लेकिन वर्ष 2022 में कार्यकाल पूरा होने से पहले ही
एमवीए की सरकार गिर
गई। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में महायुति
की सरकार बनी और शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर को रामटेक बंगला भी मिला। एकनाथ शिंदे के संकटमोचक रहे केसरकर का
मौजूदा सरकार में मंत्री पद से
पत्ता कट गया। पूर्व डीसीएम रामराव आदिक और नाशिकराव तिरपुडे भी बड़े नेता होने के बाद भी आगे नहीं
बढ़ सके थे। पूर्व
मुख्यमंत्री दिवंगत
विलासराव देशमुख इसके अपवाद सिद्ध हुए थे। विलासराव रामटेक में मंत्री के रूप में रहते थे और बाद में वे मुख्यमंत्री
पद पर आसीन हुए, लेकिन देशमुख कभी भी उपमुख्यमंत्री नहीं रहे थे।
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