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मुंबई में लगभग
४० लाख उत्तरभारतीय
नेतृत्व के लिए
सिर्फ एक को विधानसभा का टिकट
मुंबई. हाल ही में हुए
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से अति उत्साहित भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा
चुनाव में भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता इस्तेमाल
कर मुंबई में अधिक से अधिक सीटें जीतना चाहती है, पर वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने मुंबई में रहने वाले लगभग ४० लाख उत्तर भारतीयों
का नेतृत्व करने के लिए सिर्फ एक उम्मीदवार को टिकट दिया है और उसी के भरोसे
उत्तरभारतीय समाज को लुभाने की कोशिश कर रही है. कुछ राजनीतिक पंडितों की मानें,
तो भाजपा का यह सौतेला व्यवहार इस विधानसभा चुनाव में भाजपा की
लुटिया डुबो सकता है. बता दें कि मुंबई में होने वाले सभी चुनावों में उत्तरभारतीय
समाज हमेशा ही निर्णायक भूमिका में रहा है. भाजपा इन्हें अपना परंपरागत वोटर मानती
रही है. इसके बावजूद भाजपा ने मुंबई में रहने वाले उत्तरभारतीय समाज को नजरअंदाज
करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना
पड़ सकता है. इसका अंदाजा हाल ही में भाजपा के कुछ उत्तरभारतीय नेताओं के साथ हुए
छलावे से साफ नजर आ रहा है. बता दें कि भाजपा ने संजय उपाध्याय को विलेपार्ले
विधानसभा से चुनाव लड़ाने का लॉलीपॉप देकर
उनका कार्यालय तो खुलवा दिया, पर चुनावी टिकट की सूची में
विलेपार्ले विधानसभा से पराग अलवानी का नाम घोषित कर उनके चुनाव लड़ने की उम्मीदों
पर पानी फेर दिया. संजय उपाध्याय के कुछ करीबी सूत्रों की मानें, तो उनके साथ भाजपा ने ऐसा ‘धोखा’ पहली बार नहीं किया है. इससे पहले भी
भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का टिकट देकर उन्हें राज्यसभा में भेजने का आश्वासन दिया
था, किन्तु आखिरी वक्त में उन्हें निराश कर दिया. बताया जाता
है कि ऐसा ही अमरजीत मिश्रा, संजय पाण्डेय, संतोष पाण्डेय, योगेश वर्मा आदि उत्तर भारतीय नेताओं
के साथ भी हुआ है. इन्हें भी भाजपा ने सिर्फ उम्मीदों पर ही रखा हुआ है. ये नेता
भाजपा की ओर से उत्तर भारतीयों को लुभाने के लिए सिर्फ ‘बाटी-चोखा’ कार्यक्रम
आयोजित करने तक ही सीमित रहे हैं. इन्हें चुनावी मैदानों से हमेशा दूर ही रखा गया
है. ऐसे में देखना है कि उत्तर भारतीयों से भाजपा का यह ‘सौतेला’ प्रेम इस चुनाव
में भी उत्तर भारतीयों का वोट बैंक अपने साथ बनाए रखने में कितना ‘कारगर’ साबित
होता है. यह तो आने वाले वक्त ही बताएगा.
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