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मुंबई, विनोद यादव. झोपड़पट्टियों का पुनर्वसन कर उन्हें अच्छे घर व बेहतर सुविधाएँ देने के लिए सरकार पिछले कई वर्षों से अपनी कोशिशें करती आ रही है. सरकार की इन कोशिशों को अमली जामा पहनाने के लिए एसआरए योजना लाई गई थी, जिसके तहत पात्र झोपड़ों को हटाकर उस जगह पर इमारतें बनाई जाने लगीं व झोपड़ेधारकों को उन इमारतों में फ्लैट दिए जाने लगे. योजना की रुपरेखा को देखा जाय, तो गरीब झोपड़ेधारकों के लिए यह काफी लाभदायक है, पर मुंबई में कई जगहों पर देखा गया है कि एसआरए योजना के तहत बनी इमारतें साफ़-सफाई व मूलभूत सुविधाओं के मामले में झोपडपट्टियों से भी बदतर हैं. इन इमारतों का निर्माण करने वाले बिल्डर अपने निजी लाभ के लिए फ्लैट धारकों की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखने की बजाय ‘कम लागत’ का ही विशेष ध्यान रखते हैं, जिसका भुगतान इन इमारतों में पुनर्वसन योजना के तहत ठूँसे गए गरीब जनता को करना पड़ता है. ऐसा ही हाल अंधेरी पूर्व एमआयडीसी के मूळगाँव डोंगरी का कहा जा सकता है, जहाँ पीने के पानी की भी उचित सुविधा नहीं की गई है. सूत्रों की मानें, तो यहाँ रहने वाले रहिवासियों को राजनीतिक रंजिश का शिकार होना पड़ रहा है. यही वजह है कि लोगों को यहाँ पीने के पानी के लिए भी तरसना पड़ रहा है. इतना ही नहीं, लोगों को पीने के पानी के लिए डाली गई टूटी-फूटी पाइप लाइन भी गटर से होकर लोगों तक पहुँच रही है. गन्दगी का आलम यह है कि पीने के पानी की अस्थाई पाइपें नाले में छोड़ी गई हैं या नाले से निकलकर वह पाइपें लोगों के फ्लैट तक पानी पहुँचा रही हैं, यह कहना मुश्किल है. इन इमारतों का निर्माण भी आश्चर्यजनक रूप से कुछ इस प्रकार किया गया है कि इमारतों की तल मंजिल तक जाने के लिए भी बाहरी सड़क से लगभग दो मंजिल की ऊँचाई उतरनी पड़ती है. बरसात के दिनों में सोसाइटी में जगह-जगह बदबू व गंदगी भरा परिसर देखा जा सकता है. बता दें कि मेट्रो परियोजना से प्रभावित हजारों परिवारों को भी इन इमारतों में पुनर्वसित कर कुछ राजनीतिक पार्टियों ने अपने लिए ‘वाह-वाही’ बटोरी थी, पर शायद ही वे परिवार अपने इस पुनर्वसन पर खुश हों या यह भी हो सकता है कि इन इमारतों के रहिवासी अपनी इस जिल्लत भरी जिन्दगी को ही अपनी नियति मान बैठे हों. कई स्थानीय रहिवासियों का कहना है कि उनका यहाँ पुनर्वसन होने से पहले का जीवन बेहतर था. कम से कम उन्हें मूलभूत सुविधाएँ तो मिला करती थीं. यहाँ तो बिल्डर द्वारा रखा गया मनपा का लाखों का बकाया हम रहिवासियों को चुकाने की नौबत आ पड़ी है. वोट माँगने के लिए यहाँ सभी पार्टियों के नेता आते हैं, लेकिन लोगों की समस्या जानने का समय किसी के पास नहीं है. गौरतलब हो कि मूळगाँव डोंगरी में बनी इमारतें जमीन की सतह से काफी नीचे होने की वजह से यहाँ रहने वाले लोगों को सड़क, पानी और गंदगी जैसी समस्याओं से प्रतिदिन निपटना पड़ता है. इसके बावजूद उनमें से कुछ तथाकथित ‘राजनेता’ अपने आकाओं को खुश करने के लिए राजनीतिक पार्टियों के बैनर मूळगाँव डोंगरी की सोसाइटी में लगाए बैठे हैं. ऐसे में देखना है कि आगामी मनपा चुनाव से पहले मूळगाँव डोंगरी की इन समस्याओं का समाधान निकलता है? या यहाँ की जनता को केवल वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता है?
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